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आओ पर्दा लगाएँ - दैनिक प्रतियोगिता -25-Mar-2022

माँगने आया मालिक किराया

पैसे न होने का रोना था पाया।
देखकर घर के आंगन में पर्दे
प्रश्न उठा मालिक के मन में।
मोटे-मोटे पर्दे लगवाए हैं
घर में कैसे राज़ छिपाए हैं।
औरतें सदा परदों में निकली
देखा ना कभी हैसियत असली।
पर्दों के पीछे हो सकते पकवान
बिन जाने क्यों बनूँ मेहरबान।
बोला जब हैसियत नहीं जनाब
तो उतार दीजिए ये पर्दे आप।
ये पर्दे बनेंगे मेरे घर की शान
सुन ये शब्द बंदे की निकली जान।
बोला आप मुझे थोड़ा वक्त दीजिए 
पर्दों को अपनी जगह से ना खींचिए।
 मालिक का शक हुआ था पक्का
 खोलना होगा आज चिट्ठा कच्चा।
 रोकने पर भी उसने पर्दा जो खींचा
 देख अंदर का दृश्य दिल पसीजा।
 चिथडों में लिपटी महिलाएं घबराई
 पर्दे के पीछे की सच्चाई सामने आई।
 मालिक का दिल अब था दहला
 पर्दे को टांगना लगा कर्तव्य पहला।
 एहसास हुआ पर्दे के पीछे का दर्द
 नजरों के सामने से हट गई थी गर्द।
 पर्दे बचा रहे थे घर की इज्जत
 हटते ही औरतों को झेलनी पड़ी ज़िल्लत।
 दर्दनाक दृश्य देख गया बाजार
 खरीद कर लाया मालिक कपड़े चार।
 बोला ले लो यह न चाहिए मुझे किराया
 बहनों को चिथडों से मुक्त करो भाया।
 अपनी नजरों से शर्म का पर्दा हटाओ
 नियति का है खेल सब ना घबराओ।
 बंदा बोला जनाब आपने पर्दा हटा दिया
 मेरे घर की इज्जत को सरेआम लुटा दिया
 अब इस पर्दे का करूँगा मैं क्या 
 दरिद्र की बेटियों से कौन करेगा ब्याह।
 मालिक बोला अकल का पर्दा खोल
 मत बोलो परिवार के लिए ऐसे बोल।
पर्दा किसी की किस्मत न सके तोल
 बहन-बेटियाँ समाज में होती अनमोल।
 आओ हम गंदी नजरों पर पर्दा लगाएँ
 परदा औरत का नहीं कुरीति पर लगाएँ।

आरव गोयल 



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8 Comments

Ayaansh Goyal

26-Mar-2022 05:42 PM

Nice Mr. Aarav👌🏻

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Punam verma

26-Mar-2022 08:17 AM

Nice

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Renu

26-Mar-2022 07:00 AM

बहुत ही बेहतरीन

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